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Maa Kaalraatri
माँ कालरात्रि : शारदीय नवरात्र का आज सातवां दिन है| नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है| आज के दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। उनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है| माँ काली का महत्व हिंदू धर्म में करीब ६०० ईसा के आस पास एक अन्य देवी के रूप में वर्णित किया गया है। माँ कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चामुंडा, चंडी और माँ दुर्गा के विभन्न नामों से जाना जाता है|
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माँ का स्वरुप: माँ कालरात्रि के चार हाथ है| माँ के बाईं ओर ऊपर वाले हाथ में एक खडग है और नीचे हाथ में एक खून से लथ-पथ राक्षस का सिर है| माँ के ऊपर वाले दाहिने हाथ सदैव आशीर्वाद की मुद्रा में उठे रहते हैं और एक हाथ में त्रिशूल भी है| उनके गले में नर-मुंड की एक भयावह माला है| माँ का स्वरुप एकदम भयानक और विकराल है|
इनके शरीर का रंग घोर काला है| सिर के बाल बिखरे हुए है| इनके तीन नेत्र है जो कि एकदम गोल हैं और गले में विद्युत् सी चमकती हुई माला है| माँ के श्वास से अग्नि की ज्वालायें प्रज्ज्वल्लित होती है| देवी के इस भयानक रूप को देखते ही भूत, पिशाच और राक्षस स्वतः ही भय से पलायन करने लग जातें हैं|

हालाँकि, भक्तों को इनसे किसी भी प्रकार से आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। माँ कालरात्रि दुष्टों का स्वतः नाश करने वाली हैं| वे भक्तों को सदैव शुभ फल देने वाली हैं| उनके आगमन से नकारात्मक ऊर्जाओं का स्वत: नाश हो जाता है| माँ कालरात्रि हर प्रकार के ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक, इनकी कृपा से हर प्रकार के भय और बाधाओं से सदैव मुक्त रहतें हैं|
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माँ कालरात्रि के स्वरूप को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से माँ कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उन्हें पूर्ण-रूप से पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे अत्यंत शुभकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों का आकलन नहीं किया जा सकता।

हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजन करनी चाहिए। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों और भय से मुक्ति मिलती है और दुश्मनों का स्वतः नाश हो जाता है| उनकी उपासना से मिलने वाले पुण्य, सिद्धियों और निधियों, विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
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नीचे तारापीठ की माँ तारा जो कि माँ काली का ही एक रूप है, उनकी संध्या आरती का YouTube विडियो देखें जो कि वास्तविक माता की आरती है और इसे प्रत्येक दिन संध्या आरती में गाया जाता है, इसे सुनने से मन को बहुत शांति मिलती है| आप भी सुने और महसूस करें:
पुरे पश्चिम बंगाल में, माँ काली की पूजा 12 महीने होती है तथा कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर, कालीघाट, कुम्हारटोली की सिद्देश्वरी काली मंदिर अदि बड़े-बड़े भब्य मंदिर स्थित है, जहाँ भक्तों की विशाल भीड़ आम सी बात है| हर एक समय माता की भव्य पूजा का प्रचलन है| शनिवार को माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है| प्रत्येक शनिवार को श्रद्धालु मां काली को चुनरी, नारियल व प्रसाद चढ़ाते हैं और उनके सामने अगरबत्ती और दीप जलाते हैं।
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पूजा-अर्चना के बाद, वक़्त के अनुसार ढोल-नगाड़ों के साथ होने वाली महाआरती में श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और माँ का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त होता है| छठे नवरात्र से मां दुर्गा/काली का रूप, अन्य दिनों के तुलना में बड़ा होता जाता है जो कि पुरे दशमी तक चलता रहता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक पूरा जन-सैलाब सड़कों पर उतर जाता है और मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ पड़ती है|

मंदिरों में दीपक जलाने, मातारानी के दर्शन करने, रोली, धूप, दीप, नैवेद्य के साथ ही जल अर्पित करने वाले भक्त दोपहर तक मंदिरों में आते रहते हैं जो की देर रात तक चलता रहता है। घरों में सुबह और शाम को माता रानी और कलश की पूजा अर्चना एवं आरती उतारी जाती है| पूरे भारतवर्ष में और खासकर, पश्चिम बंगाल में सर्वत्र छुट्टीयाँ घोषित कर दी जाती है, ऑफिस व कारखाने बंद कर दिए जाते हैं और पूरा शहर माँ की भक्ति में तल्लीन हो जाता है| यह मौका अपने आप में एक बेहद ख़ास और अनुपम है|

कार्तिक में अमावस्या के दौरान बलि देने की भी परंपरा है, जो कि वक़्त के साथ कम होती जा रही है| बलि में सैकड़ो की तादाद में बकरों की बलि दी जाती है| तंत्र-मंत्र और साधना के लिए यह वक़्त सर्वोत्तम माना गया है|
माँ कालरात्रि की पूजा करने की विधि: एक स्वच्छ चौकी ले| जिसे गंगाजल से साफ कर ले| उसके बाद उस पर लाल कपड़ा बिछाए और माँ कालरात्रि की प्रतिमा या फोटो रक्खे| चौकी पर तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर एक नारियल या डाब रखेें| उसी चौकी पर श्री गणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी) का घर बनाये और इनकी स्थापना करें|
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वैदिक मंत्रों द्वारा माँ कालरात्रि सहित समस्त स्थापित देवी-देवताओं की पूजा करें और लाल-चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्टाहार, सुगंधित द्रव्य, धूप, दीप, दक्षिणा, आरती तथा पुष्पांजलि आदि करें| माँ को लाल जवाफूल की माला ही पहनाएं तथा पूजा में बेलपत्र अवश्य चढायें| माँ को प्रसाद के रूप में सिर्फ छेने की मिठाइयाँ ही चढ़ाये और निम्नलिखित मंत्रो से माँ कालरात्रि का आवाहन करें|
ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपादोल्लसल्लोहलता कण्टकभूषणा |
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||
माँ कालरात्रि को सन्देश जैसी मिठाइयों का ही भोग लगाना चाहिए। प्रसाद के बाद माँ कालरात्रि की प्रदक्षिणा करें| कम से कम 3 बार अपने ही स्थान पर खड़े होकर घूमें।हमारा मुख्य उद्देश्य हमारे सब्सक्राइबर्स को तमाम सही जानकारियाँ प्रदान करना है| साथ ही हमारा यह लक्ष्य है की वो हमारे प्रकाशित मंत्रो को अपने दिनचर्या के पूजा में जप करें ताकि उन्हें इसका फल प्राप्त हो|
यह सिर्फ उपन्यास की तरह पढने के लिए ही नहीं है| इन मंत्रो या विडियो को पूजा की तरह पाक समझे| दक्षिणेश्वर काली मन्दिर का इतिहास जाने |